हर कोई अपने भाग्य का खाता है” — एक दिल छूने वाली कहानी

Author: Gayatri Lohit | Published On: April 14, 2025

दोस्तों, जीवन में अक्सर हम सोचते हैं — हमारा भाग्य बड़ा है या हमारी मेहनत?
आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूं जो इस सवाल का दिल से जवाब देती है।
यह कहानी है राजा वीर प्रताप और उसकी छोटी सी प्यारी बेटी अनुपमा की।

बहुत समय पहले महेंद्रगढ़ राज्य पर राजा वीर प्रताप का राज था।
वो ना सिर्फ वीर था, बल्कि उसे अपने साम्राज्य और ताकत का घमंड भी बहुत था।
राजा को लगता था कि उसके राज्य का हर व्यक्ति उसी के दिए हुए भोजन पर पल रहा है।
अगर कोई उसकी बात काटता, तो वह उसे सख्त से सख्त सज़ा देता।

एक दिन राजा के मन में अजीब-सी सनक आ गई।
उसने सोचा, क्यों न अपने परिवार वालों से पूछूं कि वे मेरे बारे में क्या सोचते हैं?
राजमहल में उसकी पत्नी रानी जानकी और उसकी प्यारी-प्यारी बेटियाँ रहती थीं।
सबसे पहले राजा ने रानी जानकी को बुलाया और प्यार से पूछा —
“रानी, बताओ तो सही, तुम्हें जो सुख मिला है, वह किसकी वजह से है?”

रानी ने झुक कर जवाब दिया,
“स्वामी, आप ही मेरे भाग्य भी हैं और मेरे भगवान भी।
आपके कारण ही मुझे यह जीवन मिला है।”

राजा यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ।
उसने रानी को गले से लगा लिया और बोला,
“तुम दुनिया की सबसे समझदार पत्नी हो।”

इसके बाद राजा ने बारी-बारी अपनी बेटियों को बुलाया।
सबसे बड़ी बेटी आई। राजा ने वही सवाल दोहराया।
बड़ी राजकुमारी ने भी सिर झुकाकर कहा,
“पिताश्री, हम सब आपकी कृपा से सुख भोग रहे हैं।”

राजा का सीना गर्व से फूल गया।
अब बारी थी सबसे छोटी बेटी अनुपमा की।
राजा ने वही सवाल पूछा —
“बेटा, तू बताना, तू यह राजकुमारी का सुख किसकी बदौलत भोग रही है?”

छोटी सी अनुपमा मुस्कुराई और बड़ी मासूमियत से बोली,
“पिताश्री, इस संसार में हर कोई अपने भाग्य का ही खाता है।
मुझे भी अपने भाग्य से यह सुख मिला है।
भाग्य ने ही मुझे आपके घर जन्म दिया।”

अनुपमा की सीधी-सच्ची बात सुनते ही राजा का चेहरा तमतमा उठा।
उसके घमंड को गहरी चोट लगी थी।
लेकिन फिर भी, मुस्कुराते हुए उसने पूछा,
“क्या कहा? तेरी सारी खुशियां तेरे भाग्य की देन हैं?
मैं तुझे क्या कुछ नहीं देता, और तू भाग्य की बात करती है?”

अनुपमा ने सिर झुका कर धीरे से कहा,
“पिताश्री, इंसान कितना भी बड़ा हो जाए,
आखिर सब कुछ विधाता के लिखे भाग्य से ही होता है।
आप भी जो राजा बने हैं, वह भी आपके भाग्य का फल है।”

अब राजा वीर प्रताप का गुस्सा फूट पड़ा।
उसने तुरंत हुक्म दिया कि अनुपमा को महल से निकाल दिया जाए।
नन्ही राजकुमारी को कुछ सामान और थोड़ी-सी रोटियां देकर राजमहल से बाहर कर दिया गया।

छोटी सी अनुपमा अकेली, डरी-सहमी, भूखी-प्यासी महल से निकल पड़ी।
वह चलते-चलते एक दूर गांव में पहुँची, जहां एक किसान परिवार ने उसे शरण दी।
वहीं पर अनुपमा ने सादा जीवन जीना शुरू किया — खेतों में काम किया, चूल्हा फूंका, मेहनत से अपना पेट पाला।

लेकिन जैसा कि भाग्य का खेल है, धीरे-धीरे गांव में उसकी मेहनत और सद्गुणों की चर्चा फैलने लगी।
उसकी मदद से किसान का खेत खूब फलने-फूलने लगा।
गांव का मुखिया भी उसकी समझदारी से प्रभावित हुआ और उसे अपनी बहू बना लिया।

कुछ सालों बाद, जब महेंद्रगढ़ राज्य पर भयानक अकाल पड़ा,
तो राजा वीर प्रताप भी भूख-प्यास से तड़पने लगा।
राजमहल खाली हो गया, खजाना भी खत्म हो चला था।
तब राजा को अपनी छोटी अनुपमा की याद आई।

वह रोते हुए गांव-गांव अपनी बेटी को खोजने निकला।
आखिरकार, वह उस गांव पहुंचा जहां अनुपमा अब मुखिया की बहू बन चुकी थी।
राजा ने अनुपमा के सामने हाथ जोड़ दिए और कहा,
“बेटी, मैं अब समझ गया हूं, सच में हर कोई अपने भाग्य का ही खाता है।
आज मेरा भाग्य मुझे तुम्हारे दर पर ले आया है।”

अनुपमा ने अपने आंसू छुपाते हुए पिता को गले से लगा लिया।
उसने अपने पिता को भोजन कराया और उन्हें अपने घर में सम्मान से रखा।


सीख:

दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि न तो घमंड करना चाहिए,
और न ही दूसरों के भाग्य का मज़ाक उड़ाना चाहिए।
इंसान चाहे राजा हो या रंक, सबको अपना भाग्य खुद भोगना पड़ता है।
मेहनत करना जरूरी है, लेकिन विनम्रता और भाग्य पर विश्वास भी उतना ही जरूरी है।
आइए, हम भी जीवन में कभी अहंकार न करें और हर किसी के भाग्य का आदर करें।

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Author: Gayatri Lohit
A simple girl from Ilkal, where threads weave tales of timeless beauty (Ilkal Sarees). I embark on journeys both inward and across distant horizons. My spirit finds solace in the embrace of nature's symphony, while the essence of spirituality guides my path.

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