किसी छोटे से गाँव में तारा नाम की एक विधवा स्त्री रहती थी। तारा बेहद गरीब थी — घर में ढंग के बर्तन तक नहीं थे। उसका एक छोटा सा बेटा था, जिसे उसने बड़े प्यार से नसीब सिंह नाम दिया।
पर अफसोस, नसीब सिंह अपने नाम के बिल्कुल विपरीत था। उसके जन्म के कुछ ही समय बाद एक बीमारी ने उसके पिता को छीन लिया। तारा ने दूसरों के घरों में चौका-बर्तन कर के जैसे-तैसे अपना और बेटे का पेट पालना शुरू किया। उसका एक ही सपना था — नसीब सिंह बड़ा होकर उसके सारे दुःख दूर करेगा।
लेकिन नसीब सिंह खुद अपनी किस्मत से संतुष्ट नहीं था। एक दिन उसने माँ से सवाल किया,
“माँ, ईश्वर ने हमारे साथ ऐसा अन्याय क्यों किया?”
तारा ने थके हुए स्वर में कहा,
“बेटा, ये तो ईश्वर ही जानते हैं।”
नसीब सिंह जिद पर उतर आया,
“तो मैं खुद ईश्वर से पूछूँगा कि हम इतने गरीब क्यों हैं। माँ, बताओ, ईश्वर कहाँ मिलेंगे?”
तारा ने मजबूरी में कह दिया,
“बेटा, कहते हैं कि ईश्वर जंगलों में रहते हैं… लेकिन तुम वहां कभी मत जाना!”
लेकिन छोटे नसीब ने अपने दिल में ठान लिया कि वह ईश्वर को खोजेगा और अपने सवाल का जवाब पाएगा।
जंगल की ओर यात्रा
एक दिन नसीब सिंह बिना किसी को बताए घने और भयानक जंगल की ओर निकल पड़ा।
पेड़ों के बीच चलता-चलता वह थक कर चूर हो गया। चारों ओर सन्नाटा था — न ईश्वर का कोई दर्शन, न कोई संकेत। थक हार कर वह एक बड़े से पत्थर पर बैठ गया और सोचते-सोचते सो गया।
उसी समय, संयोगवश, भगवान शिव और माता पार्वती मृत्यु लोक का भ्रमण करते हुए उस स्थान पर पहुंचे।
उन्होंने छोटे बालक को अकेला जंगल में देखा तो आश्चर्यचकित रह गए। भगवान शिव ने स्नेह से पूछा,
“बेटा, तुम यहाँ इस वीरान जंगल में क्या कर रहे हो?”
नसीब सिंह ने भोलेपन से जवाब दिया,
“मैं ईश्वर को ढूंढ रहा हूँ। उनसे पूछना है कि हम इतने गरीब क्यों हैं?”
माता पार्वती बालक की मासूमियत और साहस से भावुक हो उठीं। उन्होंने भगवान शिव से कहा,
“स्वामी, हमें इस बच्चे की मदद करनी चाहिए।”
भगवान शिव ने गंभीर स्वर में उत्तर दिया,
“पार्वती, इसका भाग्य पहले से ही लिखा जा चुका है। हम भी भाग्य के लेख को नहीं बदल सकते।”
लेकिन करुणा की देवी माता पार्वती ने हार नहीं मानी। उन्होंने भगवान शिव से विनती की,
“स्वामी, कुछ तो उपाय कीजिए। इसकी मासूम भक्ति को व्यर्थ न जाने दें।”
भगवान शिव मुस्कुराए।
उन्होंने कहा,
“ठीक है पार्वती, हम इसे आशीर्वाद देंगे, लेकिन जो भी मिलेगा, उसे अपने पुरुषार्थ से पाना होगा। यही सच्चा वरदान होगा।”
सीख
यह कहानी हमें सिखाती है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, अपने पुरुषार्थ और सच्ची लगन से हम अपने भाग्य को भी बदल सकते हैं। सच्ची मेहनत, साहस और धैर्य से ही जीवन में सच्ची सफलता मिलती है।
नसीब सिंह की तरह अगर हम भी अपने सवालों के जवाब खुद ढूंढने निकलें, तो यकीन मानिए, भगवान भी हमारी सहायता के लिए रास्ता बना देते हैं।