हिंदू धर्म में माता रानी का देवियों में सर्वोच्च स्थान है। उन्हें अंबे, जगदंबे, शेरावाली, पहाड़ावाली आदि नामों से जाना जाता है। पूरे भारतवर्ष में उनके सैकड़ों मंदिर स्थापित हैं। ज्योतिर्लिंगों की तुलना में शक्तिपीठों की संख्या अधिक है। सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती, ये तीनों त्रिदेव की पत्नियां हैं, और इनके संबंध में विभिन्न पुराणों में अलग-अलग विवरण मिलते हैं। देवी पुराण में देवी के रहस्यों का विस्तार से वर्णन किया गया है।

आखिर अम्बा, जगदंबा, सर्वेश्वरी आदि के पीछे क्या रहस्य छिपा है? इसे जानना भी आवश्यक है। माता रानी के विषय में संपूर्ण जानकारी रखने वाला ही उनका सच्चा भक्त माना जाता है। हालांकि, यह भी सत्य है कि एक लेख में उनके बारे में समस्त जानकारी प्रस्तुत करना संभव नहीं है, लेकिन हम यह अवश्य बता सकते हैं कि आपको उनके बारे में क्या-क्या जानना चाहिए।
माता रानी कौन हैं?
- अम्बिका:
शिवपुराण के अनुसार, उस अविनाशी परब्रह्म (काल) ने कुछ समय बाद द्वितीय की इच्छा प्रकट की। उसके भीतर एक से अनेक होने का संकल्प जागृत हुआ। तब उस निराकार परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से आकार की कल्पना की, जो मूर्तिरहित परम ब्रह्म है। यही परम ब्रह्म एकाक्षर ब्रह्म तथा परम अक्षर ब्रह्म कहलाता है।
परम ब्रह्म भगवान सदाशिव हैं, जो एकाकी रहकर स्वेच्छा से सभी ओर विहार करते हैं। उन्हीं सदाशिव ने अपने विग्रह (शरीर) से एक शक्ति की सृष्टि की, जो उनके श्रीअंग से कभी अलग नहीं होती। सदाशिव की इस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धि तत्व की जननी और विकाररहित बताया गया है।
वह शक्ति अम्बिका कहलाती हैं, जिन्हें पार्वती या सती नहीं माना गया है। इन्हें प्रकृति, सर्वेश्वरी, त्रिदेव जननी (ब्रह्मा, विष्णु और महेश की माता), नित्या और मूल कारण के रूप में भी जाना जाता है। सदाशिव द्वारा प्रकट की गई इस शक्ति के आठ भुजाएं हैं।

पराशक्ति जगतजननी यह देवी नाना प्रकार की गतियों से संपन्न है और अनेकों प्रकार के अस्त्र-शस्त्र धारण करती है। एकाकिनी होते हुए भी यह माया शक्ति, संयोगवश अनेक रूपों में प्रकट होती है। यह शक्ति कालरूप सदाशिव की अर्द्धांगिनी हैं, जिन्हें जगदंबा भी कहा जाता है।
2. देवी दुर्गा:
हिरण्याक्ष के वंश में एक महाशक्तिशाली दैत्य उत्पन्न हुआ, जो रुरु का पुत्र था और उसका नाम दुर्गमासुर था। उसकी शक्ति से सभी देवता भयभीत हो गए थे। उसने इंद्र की नगरी अमरावती पर आक्रमण कर उसे घेर लिया। देवता शक्तिहीन हो गए और स्वर्ग छोड़कर पर्वतों की गुफाओं और कंदराओं में छिपने के लिए विवश हो गए।
संकट में पड़े देवताओं ने आदि शक्ति अम्बिका की आराधना शुरू की। देवी प्रकट हुईं और उन्होंने देवताओं को निर्भय होने का आशीर्वाद दिया। जब दुर्गमासुर को इस बात की जानकारी मिली कि देवी देवताओं की रक्षा के लिए अवतरित हो चुकी हैं, तो वह क्रोधित होकर अपनी विशाल सेना और अस्त्र-शस्त्रों के साथ युद्ध के लिए आगे बढ़ा। घोर संग्राम हुआ, जिसमें देवी ने दुर्गमासुर और उसकी समस्त सेना का संहार कर दिया। तभी से यह देवी दुर्गा के नाम से विख्यात हुईं।
3. माता सती:
भगवान शंकर को महेश और महादेव भी कहा जाता है। उन्होंने सर्वप्रथम दक्ष राजा की पुत्री दक्षायनी से विवाह किया था, जिन्हें सती के नाम से जाना जाता है।
एक बार दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया और वहां उनका अपमान किया। अपने पति का अपमान सहन न कर पाने के कारण माता सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
भगवान शंकर अत्यंत व्याकुल होकर माता सती के शरीर को लेकर पृथ्वी भर में घूमते रहे। जहां-जहां माता सती के अंग और आभूषण गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए।
इसके पश्चात माता सती ने पार्वती के रूप में हिमालयराज के यहां जन्म लिया और भगवान शिव को पुनः पाने के लिए घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वीकार किया और वे पार्वती के रूप में विख्यात हुईं।
4. माता पार्वती:
माता पार्वती भगवान शंकर की दूसरी पत्नी थीं, जो पूर्वजन्म में सती थीं। उनके पिता का नाम हिमवान और माता का नाम रानी मैनावती था। माता पार्वती को गौरी, महागौरी, पहाड़ोंवाली और शेरावाली के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि माता पार्वती को दुर्गा स्वरूपा माना गया है, लेकिन वे दुर्गा नहीं हैं।
माता पार्वती के दो पुत्र प्रमुख रूप से माने जाते हैं—एक श्रीगणेश और दूसरे कार्तिकेय।
5. कैटभा:
पद्मपुराण के अनुसार, देवासुर संग्राम में मधु और कैटभ नाम के दो राक्षस हिरण्याक्ष के पक्ष में थे। मार्कंडेय पुराण के अनुसार, देवी उमा ने कैटभ का वध किया था, जिससे वे कैटभा के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
वहीं दुर्गा सप्तशती के अनुसार, अम्बिका की शक्ति महामाया ने अपने योगबल से इन दोनों राक्षसों का वध किया था।
6. माता काली:
पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव की चार पत्नियां थीं—
- सती: जिन्होंने यज्ञ में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। यही सती दूसरे जन्म में पार्वती बनकर आईं, जिनके पुत्र गणेश और कार्तिकेय हैं।
- उमा: जिन्हें भूमि की देवी कहा जाता है। उत्तराखंड में इनका एकमात्र मंदिर स्थित है।
- तीसरी पत्नी: जिन्हें उमा भी कहा जाता था।
- काली माता: जिन्होंने इस पृथ्वी पर भयानक दानवों का संहार किया था।
मां काली ने ही असुर रक्तबीज का वध किया था। इन्हें दस महाविद्याओं में से प्रमुख माना जाता है। माता काली को अम्बा की पुत्री भी कहा जाता है।
7. महिषासुर मर्दिनी:
नवदुर्गा में से एक, कात्यायन ऋषि की कन्या ने रम्भासुर के पुत्र महिषासुर का वध किया था। ब्रह्मा के वरदान के अनुसार, महिषासुर केवल एक स्त्री के हाथों मारा जा सकता था। माता ने उसका वध कर महिषासुर मर्दिनी नाम प्राप्त किया।
एक अन्य कथा के अनुसार, जब देवता महिषासुर से युद्ध करके भी उसे पराजित नहीं कर सके, तो भगवान विष्णु ने सभी देवताओं को आदि शक्ति महाशक्ति की आराधना करने का सुझाव दिया। देवताओं के शरीर से दिव्य तेज निकलकर एक परम सुंदर देवी के रूप में प्रकट हुआ। हिमवान ने देवी को सिंह दिया और देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र देवी को अर्पित किए। माता ने प्रसन्न होकर देवताओं को महिषासुर से शीघ्र मुक्ति का आश्वासन दिया और घोर युद्ध के बाद उसका वध कर दिया।
8. तुलजा भवानी और चामुंडा माता:
देशभर में माता तुलजा भवानी और चामुंडा माता की पूजा का विशेष प्रचलन है, खासकर महाराष्ट्र में।
- माता अम्बिका ने चंड और मुंड नामक असुरों का वध किया था, इसलिए उन्हें चामुंडा कहा जाता है।
- तुलजा भवानी माता को भी महिषासुर मर्दिनी कहा जाता है, जिनका उल्लेख पहले किया जा चुका है।
9. दस महाविद्याएं:
दस महाविद्याओं में से कुछ अम्बा हैं, कुछ सती या पार्वती हैं, और कुछ राजा दक्ष की अन्य पुत्रियां मानी जाती हैं। हालांकि, सभी को माता काली से जोड़ा जाता है।
दस महाविद्याओं के नाम निम्नलिखित हैं:
- काली
- तारा
- छिन्नमस्ता
- षोडशी (त्रिपुरसुंदरी)
- भुवनेश्वरी
- त्रिपुरभैरवी
- धूमावती
- बगलामुखी
- मातंगी
- कमला
कुछ ग्रंथों में इनका क्रम भिन्न मिलता है, लेकिन यही प्रमुख दस महाविद्याएं मानी जाती हैं।
10. नवरात्रि:
वर्ष में दो बार नवरात्रि उत्सव मनाया जाता है:
- चैत्र नवरात्रि
- आश्विन माह की शारदीय नवरात्रि
पूरे वर्ष में 18 दिन देवी दुर्गा के उपासना के होते हैं, लेकिन मुख्य रूप से शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों को ही दुर्गोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
- चैत्र नवरात्रि अधिकतर शैव तांत्रिकों के लिए मानी जाती है, जिसमें तांत्रिक अनुष्ठान और कठिन साधनाएं की जाती हैं।
- शारदीय नवरात्रि सात्विक लोगों के लिए होती है, जो माता की भक्ति और उत्सव के रूप में मनाई जाती है।
नौ दुर्गा के नौ मंत्र :-
1. मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।’
मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:।’
मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:।’
मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:।’
मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:।’
मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:।’
मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:।’
मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:।’
मंत्र- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्यै नम:।
नवरात्रि व्रत:
नवरात्रि के दौरान पूरे नौ दिनों तक शराब, मांस, सहवास और अन्न का त्याग किया जाता है। इन दिनों माता की उपासना में लीन रहना आवश्यक होता है।
- यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर या अनजाने में माता का अपमान करता है, तो उसे कठिन दंड भुगतना पड़ सकता है।
- गरबा उत्सव को धार्मिक भक्ति का प्रतीक माना जाता है, लेकिन कुछ लोग इसे डिस्को और फिल्मी गीतों पर नाचने का अवसर बना लेते हैं, जो माता का घोर अपमान माना जाता है।
नवदुर्गा रहस्य:
नवरात्रि के नौ दिनों में नवदुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है:
- शैलपुत्री – पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण माता पार्वती को शैलपुत्री कहा जाता है।
- ब्रह्मचारिणी – जब माता ने घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्राप्त किया, तब वे ब्रह्मचारिणी कहलाईं।
- चंद्रघंटा – जिनके मस्तक पर चंद्र के आकार का तिलक है, वे चंद्रघंटा कहलाईं।
- कुष्मांडा – जब माता ने ब्रह्मांड की उत्पत्ति की शक्ति प्राप्त की, तब वे कुष्मांडा कहलाईं।
- स्कंदमाता – माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है, इसलिए माता को स्कंदमाता कहा जाता है।
- कात्यायनी – कात्यायन ऋषि के घर जन्म लेने के कारण माता को कात्यायनी नाम मिला।
- कालरात्रि – जब माता ने भयानक असुरों का संहार किया, तब वे कालरात्रि स्वरूप में प्रकट हुईं।
- महागौरी – कठोर तपस्या के बाद माता का रंग अत्यंत गौर हुआ, इसलिए वे महागौरी कहलाईं।
- सिद्धिदात्री – यह माता सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली होती हैं, इसलिए इन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है।
विशेष:
- शैलपुत्री और स्कंदमाता का संबंध माता पार्वती से है।
- ब्रह्मचारिणी और महागौरी भी पार्वती के ही रूप हैं।
- कुष्मांडा और सिद्धिदात्री ब्रह्मांडीय शक्ति की प्रतीक हैं।
- कालरात्रि और कात्यायनी उग्र रूप में हैं।
- चंद्रघंटा भक्तों को शक्ति और साहस प्रदान करती हैं।
इस तरह, नवदुर्गा के ये नौ स्वरूप अलग-अलग शक्तियों और गुणों को दर्शाते हैं।